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हर पेट में आग जलती है, हर सुबहो शाम लगती है । हरेक

हर पेट में आग जलती है,
हर सुबहो शाम लगती है ।
हरेक को अन्न जो देता है, 
उसकी हर बात सुननी है ।।

अंधा, बहरा, गूंगा, बनके,
हल नहीं निकलना है ।
हल वाले की बात समझने,
से ही हल निकलना है ।।

कानून जिनके लिये बनाया,
उनको जब मंजूर नहीं ।
फिर भी उसपे अड़के रहना,
लोकतंत्र का दस्तूर नहीं ।।

मजबूर नहीं मजबूत है वो,
दिनरात जो मेहनत करता है ।
कमजोर उसे समझने वाला,
मगरुर ही हो सकता है ।।

भला हो समय गंवाये बिन,
किसानों को मना लिया जाये ।
वो जब जिद पर आ गये है,
हर हाल उन्हें मना लिया जाये ।।

और देरी करने पर,
गर छोड़ देंगे वो किसानी ।
शहरियों को अन्न उगाने में,
याद आ जायेगी नानी ।।

नी नी के आगे पीछे,
दुम हिलाना बंद करो ।
जो तुम्हारा पेट भरे,
उसका भी तुम पेट भरो ।।

जेबें भर लेने से भैया,
भूख नहीं मिट सकती है।
हर पेट में आग जलती है,
हर सुबहो शाम लगती है ।।

©Ashok Mangal #AaveshVaani
#ShahadatAnvarat
हर पेट में आग जलती है,
हर सुबहो शाम लगती है ।
हरेक को अन्न जो देता है, 
उसकी हर बात सुननी है ।।

अंधा, बहरा, गूंगा, बनके,
हल नहीं निकलना है ।
हल वाले की बात समझने,
से ही हल निकलना है ।।

कानून जिनके लिये बनाया,
उनको जब मंजूर नहीं ।
फिर भी उसपे अड़के रहना,
लोकतंत्र का दस्तूर नहीं ।।

मजबूर नहीं मजबूत है वो,
दिनरात जो मेहनत करता है ।
कमजोर उसे समझने वाला,
मगरुर ही हो सकता है ।।

भला हो समय गंवाये बिन,
किसानों को मना लिया जाये ।
वो जब जिद पर आ गये है,
हर हाल उन्हें मना लिया जाये ।।

और देरी करने पर,
गर छोड़ देंगे वो किसानी ।
शहरियों को अन्न उगाने में,
याद आ जायेगी नानी ।।

नी नी के आगे पीछे,
दुम हिलाना बंद करो ।
जो तुम्हारा पेट भरे,
उसका भी तुम पेट भरो ।।

जेबें भर लेने से भैया,
भूख नहीं मिट सकती है।
हर पेट में आग जलती है,
हर सुबहो शाम लगती है ।।

©Ashok Mangal #AaveshVaani
#ShahadatAnvarat
ashokmangal4769

Ashok Mangal

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