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कभी गैरों की तरह आए तेरे शहर में। बसा लिया था तुझे

कभी गैरों की तरह आए तेरे शहर में।
बसा लिया था तुझे और उसे अपने दिल की गलियों में।

तुम्हारे जैसे कुछ लोग मिले ऐसे।
जैसे ये शहर और गलियाँ हो कुछ ख़ास अपने से।

तेरे शहर की गलियाँ हमें भाती रहीं।
तेरे दीदार में जान ले जाती रही।

दिल तेरा पत्थर क्या हुआ।
तुझसे और शहर से दूर होता रहा।
 
वक्त के साथ छूटता रहा तेरा हाथ।
अब तुम कहांँ और मैं कहांँ।

तेरे शहर में हम अब दुबारा कभी गुज़रते नहीं।
कैसे गुज़र रहे जो दिख रहे इस शहर अब वे अपने नहीं।

 ♥️ Challenge-805 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। 

♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।
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बसा लिया था तुझे और उसे अपने दिल की गलियों में।

तुम्हारे जैसे कुछ लोग मिले ऐसे।
जैसे ये शहर और गलियाँ हो कुछ ख़ास अपने से।

तेरे शहर की गलियाँ हमें भाती रहीं।
तेरे दीदार में जान ले जाती रही।

दिल तेरा पत्थर क्या हुआ।
तुझसे और शहर से दूर होता रहा।
 
वक्त के साथ छूटता रहा तेरा हाथ।
अब तुम कहांँ और मैं कहांँ।

तेरे शहर में हम अब दुबारा कभी गुज़रते नहीं।
कैसे गुज़र रहे जो दिख रहे इस शहर अब वे अपने नहीं।

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