मैं कुम्हार अपनी माटी का, रचनाकार अपनी काठी का। वो दरख्त भी बोला करता था, जबतक हाथ लगा न खाती का। खुश थे मज़लूम तंगी में, झगड़ा बुरा हुआ ज़ाती का। घुट गया बशार चार दिवारी में, क्या खूब था मंज़र घाटी का। दीप सुलग रहा अंधेरे में, सवाल था बस एक बाती का। #modashilpi सुप्रभात। सच्चाई यही है कि अपनी माटी के कुम्हार हम ख़ुद ही हैं। कोई और हमें बना-बिगाड़ नहीं सकता। #कुम्हार #yqdidi #collab #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi