अपने बिखरे भावों का मैं गूंथ अटपटा सा यह हार चली चढ़ाने उन चरणों पर अपने हिय का संचित प्यार डर था कहीं उपस्थिति मेरी उनकी कुछ घडियां बहुमूल्य नष्ट न कर दे फिर क्या होगा मेरे इन भावों का मूल्य... -वेद प्रकाश ©VED PRAKASH 73 #शिलालेख