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जिस सुबह अख़बार पढ़ते वक्त मैं सुन पाता हूँ माँ को

जिस सुबह अख़बार पढ़ते वक्त
मैं सुन पाता हूँ
माँ को रसोई में एक गीत गाते हुए तो 
मैं समझ जाता हूँ की 
आज दाल में तड़का होगा
सब्जी का रंग ज़रा ज़्यादा चटक होगा
जितनी सहजता से माँ
संगीत को ज़ायके में बदल देती है...
उतनी ही सहजता से मैं 
बचे हुए जीवन को 
प्रेम में बदलना चाहता हूँ....

©Rishi Ranjan  hindi poetry poetry in hindi love poetry in hindi metaphysical poetry sad poetry
जिस सुबह अख़बार पढ़ते वक्त
मैं सुन पाता हूँ
माँ को रसोई में एक गीत गाते हुए तो 
मैं समझ जाता हूँ की 
आज दाल में तड़का होगा
सब्जी का रंग ज़रा ज़्यादा चटक होगा
जितनी सहजता से माँ
संगीत को ज़ायके में बदल देती है...
उतनी ही सहजता से मैं 
बचे हुए जीवन को 
प्रेम में बदलना चाहता हूँ....

©Rishi Ranjan  hindi poetry poetry in hindi love poetry in hindi metaphysical poetry sad poetry
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Rishi Ranjan

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