मेरे मन के सागर में विचारों की अथाह जलराशि थी। ज्वार–भाटे सी जो, चढ़ उतर रही थी। परंतु बन भीष्म, मौन रहना पड़ा। जो न सहना था, वो सहना पड़ा।। कभी-कभी इंसान चाहकर भी कुछ भी लफ़्ज़ बयां नहीं कर सकता हैं। ऐसा वक्त हर इंसान के जीवन में एक ना एक बार जरूर आता हैं।। बस कहना बहुत कुछ हैं लेकिन बिन कुछ कहें ही बहुत कुछ कह जाता हैं, कहतें हैं ना कि - कहने की बहुत सी परिभाषा होती हैं उस में से एक परिभाषा हैं