हे..... मृगनयनी, सुरभित कमल पुष्प, तुम, स्वेत हंसिनी सी लगती हो।। पास आए तो महसूस किया तुम वीणा सी भी बजती हो।। है, कपोल तुम्हारे मक्खन से, और, अधर अंगारे लगते है। खुले केशो को संवारो तुम, जैसे चन्द्रमा से बादल छंटते है ।। मुस्काए आप तो शायद, मुरझाए फूल भी खिल जाए। नजर भर के देखो जिधर, वहां रोशन फिजाएं हो जाए।। कद है लंबा और आत्मविश्वास से उन्मुक्त लगती हो । ये हैं सोभग्य हमारा, जो अध्यापिका हमारी लगती हों।। Kisi ki sundarta Ko dekhe k JB man abhibhot hua..