शहर की ऊँची इमारतों से दिख रहे सुदूर एक उपवन में हकीकत से बहुत दूर कुछ लाल गुलाब महत्वाकांक्षी हैं एक टोकरी में जाने के लिये जहाँ से उसे अर्पित होना है ईश्वरीय आराधना में देखना है उसको भी रुतबा गुलाब होने का मगर वो नही जानता इन लता से टूटते ही खो देगा खुशबू और वो बिखर जाएगा पंखुड़ियों में रंग उसका गुलाबी भी काला पड़ने लगेगा फिर नई सुबह में कोई कोई ऐसे ही गुरुर में डूबे गुलाब की पंखुड़ियों उसे हटा देगी फेंक देगी कचरे में मिल जाएगा उसी मिट्टी में जहाँ से लता के सहारे निकला था महकता बदन लेकर ये उपवन, लताये और मिट्टी जैसे कि है परिवार, समाज और संस्कार कहने को तो मैं और आप एक गुलाब ही है #RDV19