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चला गया क्या यूं पत्थर मारना ठीक है क्या ठीक है य

चला गया 
क्या यूं पत्थर मारना ठीक है
क्या ठीक है यूं ठहरे हुए को झंकझोड़ना
पहले पत्थर मारना फिर तन्हा दरिया को
तन्हाई में अकेले छोड़ना

तुम पत्थर छोड़ो कागज़ की कश्ती चलाते
ख़ुद उतरते दरिया में
दरिया को दरिया होने का अहसास करवाते

ये बाहरी रंग एक रोज चला जाएगा
फिर याद आएगा वो ठहरा दरिया
फिर वो पत्थर मारना याद रह खाएगा

वो चुप है तो जो मन किया करोगे
पहले पत्थर मारोगे
फिर घंटों साहिल साहिल चहलकदमी करोगे

ये मन के गुब्बार खाली कहां करें तुम ये सोच 
इसीलिए तो यहां आते हो
एक बार तुम सोचना एक दरिया तुम्हारे भीतर भी है 
क्या तुम वहां भी इसी तरह पत्थर चलाते हो

©Manish Sarita(माँ )Kumar
  "दरिया पर पत्थर"

उसने दरिया पर पत्थर मारा और चला गया 
क्या यूं पत्थर मारना ठीक है
क्या ठीक है यूं ठहरे हुए को झंकझोड़ना
पहले पत्थर मारना फिर तन्हा दरिया को
तन्हाई में अकेले छोड़ना

"दरिया पर पत्थर" उसने दरिया पर पत्थर मारा और चला गया क्या यूं पत्थर मारना ठीक है क्या ठीक है यूं ठहरे हुए को झंकझोड़ना पहले पत्थर मारना फिर तन्हा दरिया को तन्हाई में अकेले छोड़ना #Poetry #people #मन #पानी #भाव #हलचल

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