कविता- "फूल जैसी हो तुम" अंकुरित हुआ पौधा कोई, उम्मीदों का आँगन सजाने। शरद की ठिठुरन से बचके, बसंत की मिठुरन लगाने। उपवन में आकर पवन भी, जिसे अपने कंधे पर उठाले। वह ख़ुश्बू का फूल हो तुम, जो खिलता उपवन महकाने। जिसे विकसित हो फल बनके, किसी परिवार की भूख मिटाने। शेष रहना फिर से बीज रूप में, पुनः आँगन में अंकुरित हो पाने। हे नारी! फूल जैसी हो तुम, सूक्ष्म दृष्टि चाहिए यह समझाने। #कोराकाग़ज़ #ज़श्न_ए_इश्क़ #collabwithकोराकाग़ज़ #पाठकपुराण