ख़ामोश तमाशाई के सर तक भी आएगी, ये जंगल की आग है घर तक भी आएगी। तू हँस रहा है क्या मेरे जलते हुए घर पर ? बदला रुख़ हवा का तो तेरे दर तक भी आएगी। कृष्ण गोपाल सोलंकी 8802585986