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"दरो दीवार सुना है, शहर श्मशान लगता है || यूँ पस

"दरो दीवार सुना है, शहर श्मशान  लगता है  ||
यूँ पसरा है सुनापन,न कोई शोर     पलता है ||
मुझे आबद करने फिर, आ जाओ सनम मेरे 2
अगर मेरी पुकारों का, तुझको फर्क पड़ता है" ||

©कवि प्रभात
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