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लदे हुए टहनी में आम, धीरे-धीरे बढ़ते आम, ओझिल बोझिल

लदे हुए टहनी में आम,
धीरे-धीरे बढ़ते आम,
ओझिल बोझिल नजरों से,
छिपे घास में सड़ते आम।।

पात-पात चिपचिप मकरन्द,
खट्टी-खट्टी मीठी गन्ध,
लिये विरासत खास अलग,
स्वप्न पीताम्बर गढ़ते आम।।

छोटे आमों की मनुहार,
रूको अभी न टोडो़ यार,
चटनी बटनी व्यर्थ अचार,
उम्र उम्र यूं चढ़ते आम।।

मुँह में नीर ललचाये नार,
काट छील जब टुकड़े चार,
नमक मिर्च कूटकर भांग,
हिस्से हिस्से यूं पड़ते आम।।

काट-काट के खायें कितने,
कोई चूस के खाये आम,
अपने-अपने भाग की गिनती,
इधर-उधर हैं छिपते आम।।

हाथ मुँह का रिश्ता आम,
उँगली-उँगली रिसता आम,
तमाम कोशिशें पाने की,
जब टहनी से गिरते आम।।

®राम उनिज मौर्य®

©RAM UNIJ MAURYA RUM #आम
लदे हुए टहनी में आम,
धीरे-धीरे बढ़ते आम,
ओझिल बोझिल नजरों से,
छिपे घास में सड़ते आम।।

पात-पात चिपचिप मकरन्द,
खट्टी-खट्टी मीठी गन्ध,
लिये विरासत खास अलग,
स्वप्न पीताम्बर गढ़ते आम।।

छोटे आमों की मनुहार,
रूको अभी न टोडो़ यार,
चटनी बटनी व्यर्थ अचार,
उम्र उम्र यूं चढ़ते आम।।

मुँह में नीर ललचाये नार,
काट छील जब टुकड़े चार,
नमक मिर्च कूटकर भांग,
हिस्से हिस्से यूं पड़ते आम।।

काट-काट के खायें कितने,
कोई चूस के खाये आम,
अपने-अपने भाग की गिनती,
इधर-उधर हैं छिपते आम।।

हाथ मुँह का रिश्ता आम,
उँगली-उँगली रिसता आम,
तमाम कोशिशें पाने की,
जब टहनी से गिरते आम।।

®राम उनिज मौर्य®

©RAM UNIJ MAURYA RUM #आम