कटे थे एक रोज पँख मेरे, अब कलम को पँख बना उड़ रही हूं मैं। लिखती हूं पन्ने-पन्ने और , किताब को आसमां कर रही हूं मैं । चलो संग मेरे दो-चार पन्ने तुम्हें भी घुमा लाऊ, क्या है व्यथा कोने कोने की तुम्हें भी दिखा लाऊ। ✍️✍️माही #पँख #नोजोतोहिन्दी