#nojoto #kavishala #nojotohindi #Book #thought तुलनात्मक अध्ययन मानवीय स्वभाव में एक खास पहचान बनाए हुआ है । मैं इस अध्ययन से सशर्त सहमत हूँ । " परिणाम, अध्ययन का सबसे खास विशेषता है अगर परिणाम मिलना बन्द हो जाए तो फिर किसी भी तरह का अध्ययन सम्भव नहीं क्योंकि यहाँ से इच्छा भंग होना शुरू हो जाता है और बिन इच्छा कुछ सम्भव नहीं । " परिणाम को दो भागों में रखकर विश्लेषण किया जाता है - या तो परिणाम हमारे अनुकुल होगा या फिर विपरीत । जब परिणाम हमारे अनुरूप होते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन हमारे अनुकुल न हों तो फिर से उसका अध्ययन । ये रही अध्ययन की बात जिसे शोध रूप में समझा जाए । अब विचार करते हैं हम अपने विषय पर - 'तुलना', तौलना, मापना और इस तरह के पर्याय वाले शब्दों के साथ ही खुद को खड़ा करता है । मैं यहाँ ये साफ कर दूँ कि मानवीय संदर्भ से इस जोड़ कर समझा जाए । तो मैं फिर बच्चे के जन्म के साथ ही इसका विश्लेषण शुरू करता हूँ - गर्भ से बाहर आते ही बच्चे की तुलना शुरू हो जाती है ; वो नाक, कान, आँख, रंग इत्यादि रूपों में । चलिए यहाँ कुछ हद तक ठीक है लेकिन आगे... "यहाँ एक बात का उल्लेख कर दूँ कि किसी भी बच्चे पर उनके माता-पिता के कर्मों का काफी हद तक प्रभाव संस्कार और स्वभाव पर पड़ता है।" जब तुलना की बात आती है तो शिक्षित एवम् अशिक्षित दोनों प्रकार के लोग एक सोच के साथ एक ही जगह खड़े दिखाई देते हैं क्योंकि सब इस इस तुलनात्मक प्रवृत्ति के बुरे पहलू के परिणाम से अन्जान से दिखाई पड़ते हैं । किसी की तुलना कैसे किया जाए इस बात से लोग अपरिचित हैं ।