बाल विवाह हँसते मुस्कुराते इस समाज का, असल रंग समझाता हूँ, जलते हुए सपने और खाक हो रहा भविष्य दिखाता हूँ, जिस कुरीति की बलि चढ़ जाता है बचपन कुछ बच्चों का, आपको उस बाल विवाह की प्रथा से परिचित करवाता हूँ, जिनके सपने अभी हौसलों की उड़ान भरने की ताक में हैं, जिनके पंख आसमानी ऊँचाइयों को मापने की फिराक में हैं, डोली के रूप में उठ रही उनकी अरमानों की अर्थी दिखाता हूँ, आइए! इस बेदाग समाज के काले कलंक से वाकिफ कराता हूँ, 🙏पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें🙏 (Full piece in the caption) ©Saket Ranjan Shukla बाल विवाह...! हँसते मुस्कुराते इस समाज का, असल रंग समझाता हूँ, जलते हुए सपने और खाक हो रहा भविष्य दिखाता हूँ, जिस कुरीति की बलि चढ़ जाता है बचपन कुछ बच्चों का, आपको उस बाल विवाह की प्रथा से परिचित करवाता हूँ, जिनके सपने अभी हौसलों की उड़ान भरने की ताक में हैं,