Nojoto: Largest Storytelling Platform

जिन्दगी की जरूरतें क्या कुछ नही करवाती , पूरा करन

जिन्दगी की जरूरतें  क्या कुछ नही करवाती ,
पूरा करने की चाहत में मैं बहुत थक जाता हूं ,
घर से निकला था  मां  के कदमों को चूम कर ,
कामयाब तो हो रहा हूं पर बहुत थक जाता हूं ,

पहली बार घर से दूर निकला हूं  मंजिल पाने ,
चलता रहता हूं राह में पर बहुत थक जाता हूं ,
कई तरह के लोग मिले कुछ अच्छे तो बुरे भी ,
रुका नही रोकने से मैं  पर बहुत थक जाता हूं ,

कुछ दोस्त बनाए हैं सुख दुःख बाटने के लिए ,
मुसीबत से अकेले लड़ के बहुत थक जाता हूं ,
एक सहारा  बना रहता है इनके साथ रहने से ,
ख़ुद को तैयार कर रहा हूं  बहुत थक जाता हूं ,

किराए का कमरा है बड़ी मुश्किल से मिला है ,
किसी का सहारा नही  पर बहुत थक जाता हूं ,
नौकरी भी मिल गई है मेरी मां की दुआओं से ,
काम तो ठीक ठाक है  पर बहुत थक जाता हूं ,

पेट तो भर जाता है  यहां मिले  इस भोजन से ,
मन में तसल्ली नही होती  बहुत थक जाता हूं ,
स्वाद नहीं मिलता यहां  मां के बने हाथों जैसा ,
कभी कभी खुद से बना के बहुत थक जाता हूं ,

©Poetry Of SJT जिन्दगी की जरूरतें  क्या कुछ नही करवाती ,
पूरा करने की चाहत में मैं बहुत थक जाता हूं ,
घर से निकला था  मां  के कदमों को चूम कर ,
कामयाब तो हो रहा हूं पर बहुत थक जाता हूं ,

पहली बार घर से दूर निकला हूं  मंजिल पाने ,
चलता रहता हूं राह में पर बहुत थक जाता हूं ,
कई तरह के लोग मिले कुछ अच्छे तो बुरे भी ,
जिन्दगी की जरूरतें  क्या कुछ नही करवाती ,
पूरा करने की चाहत में मैं बहुत थक जाता हूं ,
घर से निकला था  मां  के कदमों को चूम कर ,
कामयाब तो हो रहा हूं पर बहुत थक जाता हूं ,

पहली बार घर से दूर निकला हूं  मंजिल पाने ,
चलता रहता हूं राह में पर बहुत थक जाता हूं ,
कई तरह के लोग मिले कुछ अच्छे तो बुरे भी ,
रुका नही रोकने से मैं  पर बहुत थक जाता हूं ,

कुछ दोस्त बनाए हैं सुख दुःख बाटने के लिए ,
मुसीबत से अकेले लड़ के बहुत थक जाता हूं ,
एक सहारा  बना रहता है इनके साथ रहने से ,
ख़ुद को तैयार कर रहा हूं  बहुत थक जाता हूं ,

किराए का कमरा है बड़ी मुश्किल से मिला है ,
किसी का सहारा नही  पर बहुत थक जाता हूं ,
नौकरी भी मिल गई है मेरी मां की दुआओं से ,
काम तो ठीक ठाक है  पर बहुत थक जाता हूं ,

पेट तो भर जाता है  यहां मिले  इस भोजन से ,
मन में तसल्ली नही होती  बहुत थक जाता हूं ,
स्वाद नहीं मिलता यहां  मां के बने हाथों जैसा ,
कभी कभी खुद से बना के बहुत थक जाता हूं ,

©Poetry Of SJT जिन्दगी की जरूरतें  क्या कुछ नही करवाती ,
पूरा करने की चाहत में मैं बहुत थक जाता हूं ,
घर से निकला था  मां  के कदमों को चूम कर ,
कामयाब तो हो रहा हूं पर बहुत थक जाता हूं ,

पहली बार घर से दूर निकला हूं  मंजिल पाने ,
चलता रहता हूं राह में पर बहुत थक जाता हूं ,
कई तरह के लोग मिले कुछ अच्छे तो बुरे भी ,

जिन्दगी की जरूरतें क्या कुछ नही करवाती , पूरा करने की चाहत में मैं बहुत थक जाता हूं , घर से निकला था मां के कदमों को चूम कर , कामयाब तो हो रहा हूं पर बहुत थक जाता हूं , पहली बार घर से दूर निकला हूं मंजिल पाने , चलता रहता हूं राह में पर बहुत थक जाता हूं , कई तरह के लोग मिले कुछ अच्छे तो बुरे भी , #कविता #Trees