# मोह्हब्ब्त# मैं मेरी मोह्हबत को मोह्हबत से निभाना सीख रहा हु,, अपने दिल को धीरे धीरे बहलाना सीख रहा हु,, यु तो इक अजीब सा दर्द उठता है मेरे सीने में,,, मैं उस दर्द को सहलाना सीख रहा हु,,, मैं मेरी मोह्हबत को मोह्हबत से निभाना सीख रहा हु चलो छोड़ दिया उनको, उनकी ही खातिर आज से आवारा बेफ़िक्री में जीना सीख रहा हु,, अब मैं झूठा ही सही मुस्कुराना सीख रहा हु वो तो नहीं अब पास हमारे,, मैं रूह से रूह को बतलाना सीख रहा हु मैं मेरी मोह्हबत को मोह्हब्ब्त से निभाना सीख रहा हु तेरे बिन होगया था डिप्रेशन का शिकार,, अब धीरे धीरे निकलना सीख रहा हु,, इक्क्ठे करके टुकड़े मेरे दिल के फिर से जोड़ना सीख रहा हु,, मैं मेरी मोह्हबत को मोह्हब्ब्त से निभाना सीख रहा हु, अब तो तेरे बिन जीना सीख रहा हु, इक बार फिर से जीना सीख रहा हु , मैं मोह्हबत को मोह्हब्ब्त से निभाना सीख रहा हु,, होगा मुश्किल बहुत अब साथ नहीं कोई,, मैं खुद को ही अब, अपना बनाना सीख रहा हु मेरी कोकी को कविताओ में सजाना सीख रहा हु मैं मेरी मोह्हब्ब्त को मोहब्बत से निभाना सीख रहा हु फिर से ख़ातिर तुम्हारी जीना सीख रहा हु....... Written by : RP #मोह्हबत by RP