निडर नजरे जो होती पाक तेरी तो शायद कुछ ओर बात होती। दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये, सोचो क्या तुमने हासिल किया यदि तुम मेहनत करने आये होते तो शायद कुछ और बात होती। भाव-भंगिमा से लगता है द्वेषपूर्ण दोष व्याप्त था तुम्हारे शरीर में, थोड़ी सी मानवता लेकर आये होते तो शायद कुछ और बात होती। समाज के प्रति फर्ज नहीं देता किसी को अभद्रता का अधिकार, भाई-बंधुओं से शालीनता बरतते तो शायद कुछ और बात होती। विघटनकारी शक्तियों के इशारों पर कठपुतलियों की तरह नाचते हो, अपने विवेक को प्रखर कर पाते तो शायद कुछ और बात होती। एकीकरण की बात करते हो भाई के काम होने पर हो दूर, सभी को जोड़कर एकता कर पाते तो शायद कुछ और बात होती। कसूर तुम्हारा भी नहीं है शायद तुम्हारा धंधा है सनसनी फैलाना, प्रेम-दर्शन को उतार पाते मन में तो शायद कुछ और बात होती। ©Anil Ray निडर नजरे जो होती पाक तेरी तो शायद कुछ ओर बात होती। दोस्तों! तुम प्रदर्शन करने आये, सोचो क्या तुमने हासिल किया यदि तुम मेहनत करने आये होते तो शायद कुछ और बात होती। भाव-भंगिमा से लगता है द्वेषपूर्ण दोष व्याप्त था तुम्हारे शरीर में,