मन ये रहता है जवां *************** आज मेरे आईने ने,मुस्कुराकर मुझसे कहा उम्र तेरी कब ढली,कब तलक चलता रहा? मौन हो और चकित होकर मैंने ये उत्तर दिया तुमने है प्रतिबिम्ब खींचा,मन कहाँ बिम्बित हुआ? आईना ने रूप देखा,रंग देखा,मन कहाँ? सुन के वो उत्तर मेरा,खंड हो लज्जित हुआ। मैं चला दूब्रदल पथ पर,ढूंढने तुष्टि जरा दलित हो उस दूब ने,सर जरा ऊंचा किया पूछा मुझसे,भार इतना क्यों तेरा बढ़ने लगा क्या तुम्हारी काया पे,अब उम्र भी लदने लगी सहला के उसके सिरों को,मैंने बस इतना कहा जीव है तू भी जगत में,पंचतत्वो से बना सघनता हो या विरलता,पंचतत्वों की है क्रिया सुन मेरे उत्तर को वो जरा लज्जित हुआ था विरल वो भी कभी जो,फिर सघन था हो चला घास का मन फिर भी जवां था,भार जो ढोने लगा। मन ने है अमरत्व पाया,कब कंही लक्षित हुआ स्थूल है ये देह अपना,काल संग ढलता रहा। दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #Love #ishq #Hindi #poem #friend #geet