अट्ठाईस तारीख़ के बाद ही एक तारीख़ आ जाती और तनख़्वाह मिल जाती। इस बार फरवरी में मौसम में ज्यादा बदलाव होने के कारण पिताजी और छुटके की तबीयत खराब हो गई थी। उनके इलाज़ में ही काफ़ी पैसे लग गए। बहुत डर गया था मैं। उनकी तबीयत अब तो ठीक है पर कर्ज़ हो गया है कुछ। अभी एक तारीख़ आ जाती तो तनख़्वाह से कुछ राहत मिलती। पर नहीं, इसी साल फरवरी में उनतीस दिन होने थे। एक-एक दिन पहाड़ जैसा लगता है जब जेब में पैसे नहीं होते। कल छुटके ने चॉकलेट लाने के लिए कहा था पर पैसे थे नहीं और उधार लेने में ख़राब लग रहा था। बहुत हिम्मत करके दुकान वाले से मांगा पर उसने मंदी की बात बोलकर देने से मना कर दिया। शर्म के कारण छुटके के सोने के बाद घर गया। बेचारा बाट जोहते-जोहते सो गया था। सुबह भी उसके जगने से पहले मैं घर से निकल गया। पिताजी के भी रोज़ के खर्च हैं कुछ। उनसे भी नज़र बचाकर निकलना पड़ता है। काश! इस साल फरवरी में अट्ठाईस दिन ही होते, जिससे ज़ल्दी तनख़्वाह मिल जाती। उनतीस दिनों की फरवरी #vks #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqmuzaffarpur #february #yqvks