रोज सुबेरे आती हैं, देखन है मुसकाती हैं |
न सीधी ना टेड़ी दिखती ,लेकिन रोब दिखाती हैं |
जुल्फे तेरी मान सरोवर, नजरो की तू है रानी |
फिर भी कहते हैं कुछ मानी, कैसी है वो अभिमानी |
दुआ मिले वो मुझको ,रोज दिखे तू मुझको |
तरसे हैं अब नैन हमारे ,उड़ गई है जो चैन हमारे | #Poetry#akash