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“निर्झर” कविता अनुशीर्षक में://👇👇 निर्झर सी बहत

“निर्झर”
कविता
अनुशीर्षक में://👇👇

निर्झर सी बहती प्रकृति
सभी को करती मोहित
बंध मिट्टी पेड़ो से
जल बूंँद बूंँद गिरती
बड़े बड़े चट्टानों पर
चोट खाकर उसे तोड़ कर
निर्झरणी बन कर वो आती
बहने अविरल लेकर 
जलधारा अपनी
जल से आती मधुर स्वर
अपनी धुन में गुनगुनाती हुई
चिड़िया जाग उठी भोर हुई
प्रकृति का मोहक संगीत सुन 
सब जग प्रकृति को करते स्पर्श

     ऊँचे ऊँचे रास्तों से निकल
धरती से होते सागर से
मिलने को आतुर 
ढूंँढ़ बहती रहती 
अपना अस्तित्व का किनारा
सरिता निर्झर बहती 
देती सबको यही संदेश
कठिन रास्तों से गुज़र कर
“निर्झर”
कविता
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निर्झर सी बहती प्रकृति
सभी को करती मोहित
बंध मिट्टी पेड़ो से
जल बूंँद बूंँद गिरती
बड़े बड़े चट्टानों पर
चोट खाकर उसे तोड़ कर
निर्झरणी बन कर वो आती
बहने अविरल लेकर 
जलधारा अपनी
जल से आती मधुर स्वर
अपनी धुन में गुनगुनाती हुई
चिड़िया जाग उठी भोर हुई
प्रकृति का मोहक संगीत सुन 
सब जग प्रकृति को करते स्पर्श

     ऊँचे ऊँचे रास्तों से निकल
धरती से होते सागर से
मिलने को आतुर 
ढूंँढ़ बहती रहती 
अपना अस्तित्व का किनारा
सरिता निर्झर बहती 
देती सबको यही संदेश
कठिन रास्तों से गुज़र कर