// कवियों की जान // कभी प्रेम के रूप में पिरो दिये जाते है तो कभी वात्सल्य की करूणा में भीगो दिये जाते है, ये कविता है जनाब बिन कहे लाख बात कह जाते है | न इनमे आत्मा होता है न भावना हर परिस्थिति के साथ खुद को ढाल लेते हैं | ख़ामोशी में भी इनकी चीखें सुनाई देती है,ये कविता ही तो हर कवि के जीवन की बुनाई होती है, कभी अकेलेपन की संगिनी बनती है तो कभी महफ़िल में लगाती है चार चाँद | कभी मजबूरी हो जाती है तो कभी शौक, कभी जीने का ज़रिया होती है, तो कभी इश्क़ का दरिया | ये कविताएँ तो हम कवियों की जान होती हैं | // कवियों की जान // कभी प्रेम के रूप में पिरो दिये जाते है तो कभी वात्सल्य की करूणा में भीगो दिये जाते है, ये कविता है जनाब बिन कहे लाख बात कह जाते है | न इनमे आत्मा होता है न