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ठहर जा रे पथिक,क्यूँ भागे है चहुँ-दिशा,चहुँ-ओर मुँ

ठहर जा रे पथिक,क्यूँ भागे है चहुँ-दिशा,चहुँ-ओर
मुँडेर पर पहरा बैठा दिया,कहाँ थमा है,मन का शोर

तन को तन से बाँध दिया,मन को बाँध सके ना कोई डोर
कच्चे दुनिया के सब धागे हैं,बस गाँठें हैं हर ओर

मैं आज,तुम कल हुई,जैसे लहरें बाँटे नदी के दो छोर
पल दो पल का है फासला,दरम्यां फैला अँधेरा है घनघोर

आँखों से आँखें यूँ उलझ गई जैसे पतंग से उलझे डोर
हलचल सी दिल में मच गई जैसे दरिया में उठे हिलोर

जब बोध हुआ तब ख़बर हुई,बीत गया वो दौर
रेत थी मुट्ठी से फिसल गई,मिला न कोई ठौर

ज़िदंगी लगी है दांव पर,बाज़ी पे नहीं है कोई जोर
रूद्र तो मेरा भोला है,विधि का विधान है बहुत कठोर...
© trehan abhishek
 #पथिक #शोर #ज़िंदगी #manawoawaratha #hindipoetry #hindishayari #yqdidi #yqbaba
ठहर जा रे पथिक,क्यूँ भागे है चहुँ-दिशा,चहुँ-ओर
मुँडेर पर पहरा बैठा दिया,कहाँ थमा है,मन का शोर

तन को तन से बाँध दिया,मन को बाँध सके ना कोई डोर
कच्चे दुनिया के सब धागे हैं,बस गाँठें हैं हर ओर

मैं आज,तुम कल हुई,जैसे लहरें बाँटे नदी के दो छोर
पल दो पल का है फासला,दरम्यां फैला अँधेरा है घनघोर

आँखों से आँखें यूँ उलझ गई जैसे पतंग से उलझे डोर
हलचल सी दिल में मच गई जैसे दरिया में उठे हिलोर

जब बोध हुआ तब ख़बर हुई,बीत गया वो दौर
रेत थी मुट्ठी से फिसल गई,मिला न कोई ठौर

ज़िदंगी लगी है दांव पर,बाज़ी पे नहीं है कोई जोर
रूद्र तो मेरा भोला है,विधि का विधान है बहुत कठोर...
© trehan abhishek
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