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सूरज निकले,हम निकले सूरज छुपा हम पहुंचे घर यह उजा

सूरज निकले,हम निकले 
सूरज छुपा हम पहुंचे घर
यह उजाले से आशिकी है
या अँधेरे से लगता है डर।
फिर झूठे ये दौलत, शोहरत 
कमलेश नकली इनका असर।

माया के नशे में कई खेल किये 
छोड़कर अपना गाँव पहुंच गये शहर।

बाहर जो था, चमका दिया 
कभी न झांखा मन के अंदर।

©Kamlesh Kandpal
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