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1. कोई आवै सन्तो हर का जन संतो मेरा प्रीतम जन सन्त

1. कोई आवै सन्तो हर का जन संतो मेरा प्रीतम जन सन्तो मोहे मार्ग दिखलावै।। 2. कोई आन मिलावै मेरा प्रीतम पिआरा हउ तीस पै आप वेचाई दरसन हर देखन कै ताई।। 3. गुरमुख ढूँढ ढूढेंदेआ हर सज्जन लद्धा राम राजे।। 4. भभा भाले से फल पावहि गुर प्रसादी जिन को भओ पइया।। 5. सहो देखे बिन प्रीत न उपजे।।

अर्थ:- कोई ऐसे प्रभु के जन सन्त आवें जो सच्चे हर के जन संत हो मुझे परमेश्वर से मिलने की विधि यानी नाम कैसे ध्याना है! बता दें, मेरे प्रीतम के जन, संत जन मुझे मार्ग दिखावे।। 2. कोई प्रभु से जुड़ी हुई रूह मन मुझे मेरा प्रीतम प्यारा प्रभु मिला दे! जो ऐसा कर सके मै उसके ऊपर सभ कुछ यानी खुद को भी कुर्बान कर दूंगी!(ऐसा जीव इस्त्री मन विनती करता है प्रभु के आगे) परमात्मा निराकार के दर्शन देखने के लिए।।3. जब मै मन ने जगत में ऐसे गुरमुखो-सज्जनो-सन्तों को ढूंढा तो मुझे वह सज्जन मिल गए।। 4. भ अक्षर से उपदेश है कि जो परमात्मा के संत जनो को जगत में धुंढ़ता है उसे ही फल स्वरूप गुरमुख मिलते है और उन्हें ही वह मन का प्रसाद, गुर यानी विधि मिलती है और उन मनो में प्रभु मिलन के भाव उपजते हैं।।5. परमात्मा को इन नेत्रों से देखे बिना प्रीत नहीं उपजती।।

©Biikrmjet Sing #संत
1. कोई आवै सन्तो हर का जन संतो मेरा प्रीतम जन सन्तो मोहे मार्ग दिखलावै।। 2. कोई आन मिलावै मेरा प्रीतम पिआरा हउ तीस पै आप वेचाई दरसन हर देखन कै ताई।। 3. गुरमुख ढूँढ ढूढेंदेआ हर सज्जन लद्धा राम राजे।। 4. भभा भाले से फल पावहि गुर प्रसादी जिन को भओ पइया।। 5. सहो देखे बिन प्रीत न उपजे।।

अर्थ:- कोई ऐसे प्रभु के जन सन्त आवें जो सच्चे हर के जन संत हो मुझे परमेश्वर से मिलने की विधि यानी नाम कैसे ध्याना है! बता दें, मेरे प्रीतम के जन, संत जन मुझे मार्ग दिखावे।। 2. कोई प्रभु से जुड़ी हुई रूह मन मुझे मेरा प्रीतम प्यारा प्रभु मिला दे! जो ऐसा कर सके मै उसके ऊपर सभ कुछ यानी खुद को भी कुर्बान कर दूंगी!(ऐसा जीव इस्त्री मन विनती करता है प्रभु के आगे) परमात्मा निराकार के दर्शन देखने के लिए।।3. जब मै मन ने जगत में ऐसे गुरमुखो-सज्जनो-सन्तों को ढूंढा तो मुझे वह सज्जन मिल गए।। 4. भ अक्षर से उपदेश है कि जो परमात्मा के संत जनो को जगत में धुंढ़ता है उसे ही फल स्वरूप गुरमुख मिलते है और उन्हें ही वह मन का प्रसाद, गुर यानी विधि मिलती है और उन मनो में प्रभु मिलन के भाव उपजते हैं।।5. परमात्मा को इन नेत्रों से देखे बिना प्रीत नहीं उपजती।।

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