आँधियों के साथ, क्या मन्ज़र सुहाने आये, आग लगाने वाले ही, आग बुझाने आये, जल चुकी थी सख्सियत मेरी, साजिश की आग में, कम्बख़्त लौटकर वही राख उठाने आये। ©Vishesh #Path बादल सिंह 'कलमगार' NIKHAT (दर्द मेरे अपने है )