थम-सी गई जिन्दगी मेरी चैन ना मिले एक भी घड़ी कहाँ जाऊँ, क्या करूँ? कुछ भी समझ में ना आए मेरी। ये जिन्दगी बनकर रह गई बस एक पहेली, कैसे सुलझाएं इसकी बुझौअली? रात के अंधेरे में जब सारा जहां सोता है तब भी मेरी आँखों में नींद नहीं होती है सुबकता है दिल मेरा,तिल-तिल मैं मरती हूँ .....और ये ज़माना क़िस्मत पर मेरी, ख़ूब ठिठोली करती है। कब तक सहें , कब तक लड़ें आख़िर स्वयं से कब तक समझौता करें? कोई निराकरण नहीं सूझता है। ©नेहा ईश्वर #Heartbeat