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आवाज़ों के जंगल में, इक शोर सुनाई देता है, जो कानो

आवाज़ों के जंगल में,
इक शोर सुनाई देता है,
जो कानों के दरवाज़ों पर,
ख़ूब ढिंढोरा पीटता है।।
मैं सपनों में उठ जाता हूं,
फ़िर बड़ी चपलता से उठकर,
वही आवाज़ ढूंढने लगता हूं।
और पूरा दिन फ़िर कोलंबस सा,
मैं चप्पा चप्पा छानता हूं,
फ़िर सूरज की छिपती किरणों से,
मैं मदद मांगने लगता हूं।।
एक इशारा वह कर देता है,
वो आवाज़ जहां से आती है,
मैं सुन्न हो गया वह जगह देखकर,
मैं ठहर गया वह महल देख कर,
जिसपर मृत देह सजी पड़ी थी।
लकड़ी के उस जंगल पर,
तमाम आवाजें उठती हैं,
और वहीं कहीं पर मैंने देखा,
तमाम आवाज़ें भी मरती हैं।।
Shivank Srivastava 'Shyamal' #InspireThroughWriting 
आवाज़ों के जंगल में,
इक शोर सुनाई देता है,
जो कानों के दरवाज़ों पर,
ख़ूब ढिंढोरा पीटता है।।
मैं सपनों में उठ जाता हूं,
फ़िर बड़ी चपलता से उठकर,
वही आवाज़ ढूंढने लगता हूं।
आवाज़ों के जंगल में,
इक शोर सुनाई देता है,
जो कानों के दरवाज़ों पर,
ख़ूब ढिंढोरा पीटता है।।
मैं सपनों में उठ जाता हूं,
फ़िर बड़ी चपलता से उठकर,
वही आवाज़ ढूंढने लगता हूं।
और पूरा दिन फ़िर कोलंबस सा,
मैं चप्पा चप्पा छानता हूं,
फ़िर सूरज की छिपती किरणों से,
मैं मदद मांगने लगता हूं।।
एक इशारा वह कर देता है,
वो आवाज़ जहां से आती है,
मैं सुन्न हो गया वह जगह देखकर,
मैं ठहर गया वह महल देख कर,
जिसपर मृत देह सजी पड़ी थी।
लकड़ी के उस जंगल पर,
तमाम आवाजें उठती हैं,
और वहीं कहीं पर मैंने देखा,
तमाम आवाज़ें भी मरती हैं।।
Shivank Srivastava 'Shyamal' #InspireThroughWriting 
आवाज़ों के जंगल में,
इक शोर सुनाई देता है,
जो कानों के दरवाज़ों पर,
ख़ूब ढिंढोरा पीटता है।।
मैं सपनों में उठ जाता हूं,
फ़िर बड़ी चपलता से उठकर,
वही आवाज़ ढूंढने लगता हूं।

InspireThroughWriting आवाज़ों के जंगल में, इक शोर सुनाई देता है, जो कानों के दरवाज़ों पर, ख़ूब ढिंढोरा पीटता है।। मैं सपनों में उठ जाता हूं, फ़िर बड़ी चपलता से उठकर, वही आवाज़ ढूंढने लगता हूं।