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सबका आभार करूंगा! दो दो पुस्तक छप कर मेरी, आज


सबका आभार करूंगा!

दो दो  पुस्तक छप कर मेरी,
आज  पहुंच गई  बजारों में।
जो वर्षों पहले, देखा सपना,
कर डाला ,उसे  हकीकत में।।

कलम  पुजारी  मैं  बन बैठा,
हम अक्षर के संग  खेल  गए 
जब  मां  का  आशीष मिला,
तब   हम  लेखक   कहलाए।।

भूख  प्यास ,मेरी  गायब  थी,
जब मुझे कलम से प्यार हुआ।
अक्षर  जोड़  हम शब्द बनाए,
तब कविता  का  जन्म  हुआ।।

गुरु  से  मैंने  जो  कुछ सीखा,
वही  बात  पुस्तक  में  लिखा।
मात-पिता का सुमिरन करके,
कलम पकड़कर लिखने बैठा।।

धन्य  धन्य   मेरी   जीवनसाथी,
जो  लिखने  में  सहयोग किया।
भाई , मित्र का आभार करूंगा,
जो यहां पहुंचने में,मदद किया।।

©कवि होरी लाल "विनीता"
  सब का मैं आभार करूंगा

सब का मैं आभार करूंगा #कविता

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