तन भगवा धारण कियो, ऐसे ना संत होय, मूल्य चुकाना पड़ता है, मन सकल जग समान होय। ना कुछ मेरा ना कुछ तेरा, ह्रदय मोह-माया मुक्त होय, राम रटण ना जिह्वा से, तन-मन राम रंग होय। वो राम-राम बोलत रियो, ऐसे कैसे संत होय, राम खुद बोलत नाम भक्त का, वो तो जिव ही रामप्रिय होय। जो कहत जात खुद को संत, रे मनवा..... वो तो ढोंगी होय, आत्मन राम जिसे बसिया, वो ही सच्चा संत होय। -Yashkrupa ©Shital Goswami #संत