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बस चला जा रहा था किसी जानिब को मैं... न आगे के रस्

बस चला जा रहा था
किसी जानिब को मैं...
न आगे के रस्ते की ख़बर 
न पीछे छूटी राह का होश 
न पत्थरों की ठोकर की परवाह
और न ही अजनबी फ़िज़ाओं का कोई खौफ़

चंद सिक्के थे मेरी जेब में,
एहसासों के,
जज़्बातों के,
वफ़ाओं के,
मुहब्बतों के सिक्के, 
मैं चला जा रहा था 
किसी जानिब की ओर...

(read entire poem in the caption below 👇)
.
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©Yamit Punetha [Zaif] (नज़्म - चंद सिक्के थे मेरी जेब में )
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बस चला जा रहा था
किसी जानिब को मैं...
न आगे के रस्ते की ख़बर 
न पीछे छूटी राह का होश 
न पत्थरों की ठोकर की परवाह
बस चला जा रहा था
किसी जानिब को मैं...
न आगे के रस्ते की ख़बर 
न पीछे छूटी राह का होश 
न पत्थरों की ठोकर की परवाह
और न ही अजनबी फ़िज़ाओं का कोई खौफ़

चंद सिक्के थे मेरी जेब में,
एहसासों के,
जज़्बातों के,
वफ़ाओं के,
मुहब्बतों के सिक्के, 
मैं चला जा रहा था 
किसी जानिब की ओर...

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©Yamit Punetha [Zaif] (नज़्म - चंद सिक्के थे मेरी जेब में )
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बस चला जा रहा था
किसी जानिब को मैं...
न आगे के रस्ते की ख़बर 
न पीछे छूटी राह का होश 
न पत्थरों की ठोकर की परवाह
yamitpunethazaif3604

Zaif

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