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अंधाधुंध चलने के दौर में अगर उठीं मेरी आवाज तो इस

अंधाधुंध चलने के दौर में अगर उठीं मेरी आवाज तो इस तरहा आगाज का बिगुल बजा देगी,
जो बहरूपिये बन बैठे हैं आशिक उनके दिलों मे भी, मेरी कविता क्रांति की आग लगा देगी,

आशिक-दिवानों की तो झूठी कश्ती डूबने पर बुरा हाल होता हैं,
वहीं होतें हैं क्रांति से भरे देशभक्त जिनके खून में उबाल होता हैं,

©पवन आर्य हम आर्य  समाजी हैं  आपसे कम थोडी हैं,
देशभक्त होना किसीके बाप में दम थोड़ी हैं
अंधाधुंध चलने के दौर में अगर उठीं मेरी आवाज तो इस तरहा आगाज का बिगुल बजा देगी,
जो बहरूपिये बन बैठे हैं आशिक उनके दिलों मे भी, मेरी कविता क्रांति की आग लगा देगी,

आशिक-दिवानों की तो झूठी कश्ती डूबने पर बुरा हाल होता हैं,
वहीं होतें हैं क्रांति से भरे देशभक्त जिनके खून में उबाल होता हैं,

©पवन आर्य हम आर्य  समाजी हैं  आपसे कम थोडी हैं,
देशभक्त होना किसीके बाप में दम थोड़ी हैं