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पलटता नहीं हैं जैसे रुख़ हवा का, चलती जाती है वो अथ

पलटता नहीं हैं जैसे रुख़ हवा का,
चलती जाती है वो अथक;
मैं भी वो हवा हूँ
मदमस्त मदहोश जो गुनगुना रही हैं
गुरूर से इक ओर बह रही है
पर अगर जो बह चली नज़रों के परे,
मुड़कर वापस कभी ना आऊँगी
लाख पुकारोगे तुम यू तो
पर हाज़री मेरी मिल ना पाएगी।
हवा हूँ मैं, बह जाऊँगी
क़ैद मुझे ना कर पाओगे तुम
चली गई जो इक बार मैं,
वापस फिर ना आऊँगी। #life #poem #philosophy #problems #love #writing #think_and_sharpen #sanjana_saxena
पलटता नहीं हैं जैसे रुख़ हवा का,
चलती जाती है वो अथक;
मैं भी वो हवा हूँ
मदमस्त मदहोश जो गुनगुना रही हैं
गुरूर से इक ओर बह रही है
पर अगर जो बह चली नज़रों के परे,
मुड़कर वापस कभी ना आऊँगी
लाख पुकारोगे तुम यू तो
पर हाज़री मेरी मिल ना पाएगी।
हवा हूँ मैं, बह जाऊँगी
क़ैद मुझे ना कर पाओगे तुम
चली गई जो इक बार मैं,
वापस फिर ना आऊँगी। #life #poem #philosophy #problems #love #writing #think_and_sharpen #sanjana_saxena