थी मेरी ये आरज़ू अब और अर्ज़ न रहे सफर में हमारे तुम्हारे दरमियान कोई अधिक फासला न रहे मजा तभी है मोहब्बत का जब दोनों की ज़िन्दगी गर्क में रहे मै डूब जाऊं तू भी सलामत में न रहे खुदा बना दिया है मेरी मोहब्बत ने तुझे तो दिल में मेरे क्यूं रहे गर मै डूब जाऊं तो तुझे मालूम न रहे मोहब्बत मेहरबां न मेरा न तेरा तो दोस्ती ही सलामत रहे दर्द मेरा अधिक सुर्खियों में तेरा नाम न रहे हमें इंतजार है कब आएंगे बिछड़ने खातिर दिल भी यही चाहता है गुफ्तगू तेरे सिवा किसी और से न रहे गर आप कभी बेखबर गुज़रे तो ये सदा भी दे दें हमारे ख्याल ए ख्वाब का मोहब्बत कभी बदनाम न रहे मेरे द्वारा रचित इक ग़ज़ल अंजाम ए मोहब्बत ©Prem Narayan Shrivastava मेरी स्वरचित इक ग़ज़ल अंजाम ए मोहब्बत #philosophy