दो रोटी के लिए इंसान को बिकते देख लो अपने को अपनों से रोज दूर जाते देख लो पसीने से लथपथ खेतों में किसान हो जहां सावन को दूर दूर तक लापता देख लो। ©sanjaysaha Saha # हिंदी कविता