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गांव के अँधेरे को छोड़ शहर की चमकती रौशनी मे अपनी

गांव के अँधेरे को छोड़ 
शहर की चमकती रौशनी मे
 अपनी किस्मत आजमाने आए थे
खुशियों का पिटारा खोल 
हम गम को गले लगाने आए थे
मिट्टी की झोपडी मे दिए जलाकर पढ़ते थे
आज हुक्म के शहर मे 
हम किसी के नौकर बनकर आए थे
खुशी का पता नहीं आज गमों मे रात गुजारी है
परिवार को छोड़ा हमने तो 
आज ख़ामोशी साथ निभाने आयी है
कभी लबों पर मुस्कान लिए हम पूरे गांव चमकते थे
आज शहर की इस चमक मे हम गुमनाम हुए फिरते है

©shristi dubey
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