2122 2122 212 देख अम्बर यूँ पिघलता रह गया, दर्द आँसू बन निकलता रह गया मैं गिला अब क्या करूँ तुमसे कहो वक्त मेरा मन बदलता रह गया इक चिड़ा निकला था मंज़िल ढूंढने पिंजरे मे ही फिर टहलता रह गया जब भरोसा आँख मीचे है तेरा हाथ अपने फिर मसलता रह गया हर किसी की हाँ मे सिर हिलता जो है दिल के हाथो वो कुचलता रह गया वाह वाही को जो समझे शोहरते वो उसी रुख को फिसलता रह गया रह गया