सोशल मीडिया जब इस्तेमाल करना शुरू किया तो बहुत फैसिनेशन होता था. स्मार्टफोन तो थे नहीं, दिनभर लैपटॉप खोलकर बकैती करने का अपना ही जूनून था. लगता था ये जगह कितनी लोकतांत्रिक है. नए लोगों से मिलने, उनका लिखा पढ़ने, उनसे संवाद करने के लिए कितनी अच्छी जगह है. आज कई साल बाद यहां कुंठा के सिवा कुछ भी देखने को नहीं मिलता. सब खुद को ईश्वर और दूसरे को या तो गलत, या मूर्ख मानकर बैठे हैं. कोई किसी को सिर्फ इसलिए पढ़ता है कि बदले में कुछ कह सके. कहना ज़रूरी भी है. होगा ही. गलत को गलत तो कहना चाहिए ही. मगर गलत को गलत और सही को सही और सुंदर को सुंदर कहा गया भी एजेंडा और पॉलिटिक्स के फेर में फंस जाता है. यकीन मानिए, सब ख़त्म हो जाएगा. बस मीम बचेंगे. इसलिए तमाम '-वाद' में न फंसकर जितनी जल्दी मीमवादी हो जाइए, उतना अच्छा है. ©Vishal Goswami #dushyantkumar #prabhat #Kuch_Bevajah_Nikle_Huye_Alfazz_ #paper