समेटे प्रश्न का दामन सुनो क्या पूछती वसुधा प्रश्न जीवन के रंगों का उसके अस्तित्व से जुड़ा प्रकृति बिना क्या जीवन की कल्पना होगी बिना इसके पर्यावरण की क्या संकल्पना होगी घेरा प्राणवायु का तुम्हे वरदान मेरा था विटप की नित तपस्या का क्या माँगा मोल कोई था समझोगे भला कब धरा की वेदना को तुम जो था अनमोल देखो कैसे वह अब मोल है बिका किस पथ पर चलकर तुम प्रगति के गीत गाते हो प्रगतिदर बताते हो मुझे धुरी बनाते हो सुशोभित थी हरित वर्णों से देखो हश्र क्या किया वसुधा के अलंकृत रूप को जो मैला कर दिया संरक्षण को मेरे करने दिवस यह आज आया है पर्यावरण जागृती लाने तुमने ये दिवस मनाया है सभ्यता ये आधुनिक भला कब जागरूक होगी वसुधा के लिये यह एक दिवस क्या काफी होगी 🖊️उज्ज्वला(परछाईं) #5th june