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कैसे? रात के ख्वाब दिन में बुनती हो तुम, मेहनत को


कैसे?
रात के ख्वाब दिन में बुनती हो तुम,
मेहनत को इबादत में कैसे परो लेती हो तुम

लोग देखे, देखे ऐसे दिन तुमने 
मिला ना सुख ए चेन जिनमें,
फिर भी उन्हें नज़ाकत से कैसे संभाल लेती हो तुम

तलाशते लोग खबर शख्सियत की तुममें,
प्रचण्ड मिजाज़ से रुख केसे बदल देती हो तुम

सूर्य से तपते इस लोक में चांद सी शीतलता तुममें,
इस अभिशापी दुनिया की अपवाद कैसे बन जाती हो तुम

कैसे बयां करू में तुमको
नारी नहीं साक्षात वरदान हो तुम💝

©Shubham
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