मै इतना जो चल रहा हुं आखीर काहां तक जाउंगा? आखोंके अथरूसे ना जाने कब छुटकारा पाउंगा मेरी बेखाँफ कलम को कब रझा अदा फर्मायेगी 'तेरी बेवफाईसे कब तक मेरे पंने भिगायेगी हर रोज निकलता हूँ यही सोचके कि आज तेरा जिक्र ना होगा चार कदम चलनेके बाद रुक जाता हुं सोचके तेरे बिना इस कलमकार का आकार क्या होगा माना मै गलत था तो तुने हाथ छोड दिया अब किसी राहपे टकरा भी गयी तो मुझे देख मुस्कुरानेका भी तुझे अधिकार ना होगा गलत तो वक्तभी होता है जब हम ऊसे किसी औरको सौप देते है उसी नजदिकियो कि वजहसे गलत वक्तमे भी हम मदहोश होते है मै इतना जो चल रहा हुं आखीर काहां तक जाऊंगा? आखोंके अथरूसे ना जाने कब छुटकारा पाउंगा किसी कोहिनूर से भी अब बात करता हुं जैसे मेरी जुबान असुरी हो वजह मेरी रुह पर भी 'तेरी याद लिपटी है जैसे हिरन कि कस्तुरी हो इंतजार के राही संग कच्ची सडकेभी लगे जैसे नायाब हो भगवान ने झोली मे अमृत दिया वो भी तेरे बिना लगा जैसे वाह्यात हो मै इतना जो चल रहा हुं आखीर काहां तक जाऊंगा? आखोंके अथरूसे ना जाने कब छुटकारा पाउंगा - विक्रम #HerDarkShadow