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बादलों की छलनी से छिटकती धूप, धरा की कोख से उपजती

बादलों की छलनी से छिटकती धूप,
धरा की कोख से उपजती नवीन दूब,
नए पत्तों से श्रृंगार करते पेड़ पौधे,
सर्द ना गर्म,हवा के सुहाने झोंके,
एक ठहराव लिए, प्रकृति का यौवन,
खिले खिले से दिखते, सारे उपवन,
प्रेम को उदघोषित, करती वसुधा,
सौन्दर्य से परिपूर्ण ,होती हर क्षुधा,
वियोग ख़त्म करने हेतु,समां बंधाया है,
फिर इस बार खिल के, 'वसंत' आया है,
फिर इस बार खिल के , 'वसंत' आया है "...

Author Vivek Sharma



 #vasanthisaravanan #vasantpanchmi #basantpanchami #yqbaba #yqquotes #yqtales #yqhindi #yqpoetry
बादलों की छलनी से छिटकती धूप,
धरा की कोख से उपजती नवीन दूब,
नए पत्तों से श्रृंगार करते पेड़ पौधे,
सर्द ना गर्म,हवा के सुहाने झोंके,
एक ठहराव लिए, प्रकृति का यौवन,
खिले खिले से दिखते, सारे उपवन,
प्रेम को उदघोषित, करती वसुधा,
सौन्दर्य से परिपूर्ण ,होती हर क्षुधा,
वियोग ख़त्म करने हेतु,समां बंधाया है,
फिर इस बार खिल के, 'वसंत' आया है,
फिर इस बार खिल के , 'वसंत' आया है "...

Author Vivek Sharma



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Vivek Sharma

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