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मुझे साकार अपनी कल्पना को यार करना है। कोई आकार दे

मुझे साकार अपनी कल्पना को यार करना है।
कोई आकार देकर अल्पना को  हार करना है।
मेरा तन दूर है तुमसे मग़र मन में बसे हो तुम !
मेरा दिल हो गया मंदिर तुझे भी इष्ट करना है। मुझे साकार अपनी कल्पना को यार करना है।
कोई आकार देकर अल्पना को  हार करना है।
मेरा तन दूर है तुमसे मग़र मन में बसे हो तुम !
मेरा दिल हो गया मंदिर तुझे भी इष्ट करना है।
©दिव्यांशु पाठक
♥️ Challenge-719 #collabwithकोराकाग़ज़ #पाठकपुराण
#दूरहूँतुमसे #KKC719 #yqdidi #yqbaba #कोराकाग़ज़  #YourQuoteAndMine
Collaborating with कोरा काग़ज़
मुझे साकार अपनी कल्पना को यार करना है।
कोई आकार देकर अल्पना को  हार करना है।
मेरा तन दूर है तुमसे मग़र मन में बसे हो तुम !
मेरा दिल हो गया मंदिर तुझे भी इष्ट करना है। मुझे साकार अपनी कल्पना को यार करना है।
कोई आकार देकर अल्पना को  हार करना है।
मेरा तन दूर है तुमसे मग़र मन में बसे हो तुम !
मेरा दिल हो गया मंदिर तुझे भी इष्ट करना है।
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