जाने क्यों हुआ,कैसे हुआ,होता गया हालात कि कांच चुभने लगे! दर्पण में जब भी देखता है वो,अपनी ही बातों से मुकर जाता है!! कल तक तो वो गुलाब सा था,कि लगता था किसी ख्वाब सा था! उसकी खुशी भी तो बेहिसाब सा था,कि वो बातों से डर जाता है!! जाने क्यो्