जो नेकी कर के फिर दरिया में इस को डाल जाता है वो जब दुनिया से जाता है तो माला-माल जाता है। सँभल कर ही क़दम रखना बयाबान-ए-मोहब्बत में यहाँ से जो भी जाता है बड़ा बेहाल जाता है। कभी भूखे पड़ोसी की ख़बर तो ली नहीं उस ने मगर करने वो उमरा और हज हर साल जाता है। मनाऊँ हर बरस जश्न-ए-विलादत किस लिए आख़िर यहाँ हर साल मेरी उम्र का इक साल जाता है। है दुनिया तक ही अपनी दस्तरस में दौलत-ए-दुनिया फ़क़त हमराह अपने नामा-ए-आमाल जाता है। बिना देखे ख़ुदा को मानता हूँ इस लिए 'साहिल' कोई तो है जो हम को रोज़ दाना डाल जाता है। ©ᴋʜᴀɴ ꜱᴀʜᴀʙ #बिना_देखे_खुदा_को_मानता_हूं... urdu poetry love poetry for her poetry in hindi