किताबें हिजरत करते सोचना पड़े इतना साज नही बनाऊंगा मज़बूरी में अपनाना पड़े ऐसा रिवाज नही बनाऊंगा एक एक करके लूटकर ले गये सब दौलत मेरी मैं किताबो के लिए खुला दराज नही बनाऊंगा उसको देखता हूं तो अब डर लगने लगता है दोस्त तो बनाऊंगा कोई हमराज नही बनाऊंगा मेरी खुदकुशी के बाद सूनकर सिसकेगी मेरी माँ मैं अपने जैसी कोई और आवाज नही बनाऊंगा एक बार में ही रो पड़ता हु पांच वक़्त में क्या होगा उसको याद तो करूँगा फिर से नमाज नही बनाऊंगा #किताब #hijrat