ऐ! ज़िन्दगी तू कभी मुकम्मल नहीं हुई। मेरी मज़बूरी का फ़ायदा उठाती हुई। तू हमेशा मौका के बदले धोखा देती रही। मेरी परिस्थिति का तू मज़ाक बनाती रही। ज़िन्दगी से मैं तेरे रूठी हुई साथी अपना छूटा कोई। सिसकियाँ निकलती अजनबी रातों को सांँसें घुलती हुई। सब कुछ है मगर सच्ची खुशी कोई भी नहीं। ग़म है ज़िन्दगी में दर्द दिल से जाता ही नहीं। राह–ए–मोहब्बत में मुझे लूटा हर कोई यहीं ज़िन्दगी अब बीत रही मेरी अधूरी ही सही। हर कोई शामिल ज़िन्दगी में हर पल कहीं। लेकिन तेरी कमी पूरा करता कोई भी नहीं। थोड़ा छुप छुप कर जीने की कोशिश हमने भी की। थक कर कभी उदास जो हुई कभी किसी ने हाल पूछा ही नहीं। अब अपने ज़िन्दगी पर एतबार भी मुझे रहा ही नहीं। समझ लिया मैंने उदास भरी ज़िन्दगी अब कटेगी ऐसे ही। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1105 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।