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वतन की सर-ज़मीं से है.. इश्क़ ओ उल्फ़त, ये हमारी

वतन की सर-ज़मीं से है..  इश्क़ ओ उल्फ़त,
ये हमारी माँ, इसे बसर तुम मिट्टी ना समझो...
..
जाँ-निसार हॅसते-हॅसते कर दी है शहीदों ने,
वतन की खातिर है जाँ निसार मेरी समझो...
..
कभी पड़ी जरुरत, पहली सफ़ में मिलेंगे,
तिरंगे के लिए कत्ल मेरा,अभिमान समझो...
..
जनता का है शासन,गणराज्य है मेरा देश,
धर्मनिरपेछता, हर धर्म में भाईचारा समझो...
..
हिन्द ए पाक से ही ख़ुशबू-ए-वफ़ा आती है,
यहाँ अनेकता में एकता,बेसुमार है समझो...

©kabir pankaj #RepublicDay
वतन की सर-ज़मीं से है..  इश्क़ ओ उल्फ़त,
ये हमारी माँ, इसे बसर तुम मिट्टी ना समझो...
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जाँ-निसार हॅसते-हॅसते कर दी है शहीदों ने,
वतन की खातिर है जाँ निसार मेरी समझो...
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कभी पड़ी जरुरत, पहली सफ़ में मिलेंगे,
तिरंगे के लिए कत्ल मेरा,अभिमान समझो...
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जनता का है शासन,गणराज्य है मेरा देश,
धर्मनिरपेछता, हर धर्म में भाईचारा समझो...
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हिन्द ए पाक से ही ख़ुशबू-ए-वफ़ा आती है,
यहाँ अनेकता में एकता,बेसुमार है समझो...

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